संस्थान का उद्देश्य नैतिक आध्यात्मिक अनुशीलन अनुसंधान के द्वारा उन मानवीय मूल्यों का आकलन करना है जो व्यापक मानव संस्कृति एवं सभ्यता के विकास का आधार बन सके और जिसके लिये जैन तीर्थकारो के उदार तत्वों से अर्थवती प्रेरणा प्राप्त की जा सके । इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संस्थान निम्नलिखित कार्य कर रहा है
- भारत में उपलब्ध जैन विना सम्बन्धी सामग्री का संकलन शोधकार्य, सम्बन्धित ग्रन्थों का विकासात्मक अध्ययन, उपलब्ध सामग्री का भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेजी में प्रमाणित भाषान्तर कार्य करना।
- जैन विना सम्बन्धी सामग्री के सुसम्बद्घ अध्ययन हेतु विभिन्न सांस्कृतिक महत्व की परम्परागत मान्यताओं की जानकारी के लिए रचनात्मक कार्य एवं शोध कार्य करना।
- जैन विद्या संबंधी आधारभूत और मानवीय मूल्यो को, जिसे सदियों से भारत में संजोये रखा गया है, इस प्रकार से सुरक्षित रखना ताकि वह नष्ट न हो
- जैन विना के भारतीय एवं विदेशी विद्वानों का अध्ययनअध्यापन की सुविधा उपलब्ध कराना जो भारत और विदेशो में प्राप्त जैन विना के तुलनात्मक अध्ययन में उपयोगी हो सके।
- ऐसे अध्येता एवं शोध कार्य विद्वानों को पुरस्कार एवं उपाधि आदि प्रदान करने के लिए शासन एवं विश्वविद्यालयों की सहमति से नियम बनाना और अनुमति प्राप्त करना।
- जैन विद्या के अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ में ग्रन्थ सूची, समीक्षात्मक अध्ययन, अनुवाद शोध पत्रिका, शब्दकोष आदि ग्रन्थों का प्रकाशन।
- द्दात्रवृत्ति, शोधवृत्ति, अध्ययन वृत्ति, मात्रावृत्ति आदि उपलब्ध कराना।
- उद्देश्य के अनुरूप परिचर्चा, चरित्रवाद, परिगोष्ठी, व्याख्यान, सम्मेलन आदि आयोजित करना।
- सम्बन्धित एवं सन्दर्भित ग्रन्थों, पाण्डुलिपियों, माइक्रोफिल्मस आदि का पुस्तकालय स्थापित करना।
- जैन तीर्थ क्षेत्रो व सांस्कृतिक केन्द्रो की मर्यादा पवित्रता और सामान्य स्वच्द्दता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्य करना।
- जैन तीर्थ क्षेत्रो पर प्रदूषण की रोकथाम के लिए जिसमें नदी, जल, स्थान, तालाब, सरोवर, एवं कुण्ड सम्मिलित है, कार्य करना।
- जैन तीर्थ क्षेत्रो के विभिन्न केन्द्रो में घाटों, सरोवरो, कुंडों और सांस्कृतिक व वास्तुकला के महत्व के अन्य स्मारको/स्थानों का पुनर्स्थापन, सुधार और अनुरक्षण करना।
- जैन तीर्थ केन्द्रो में पर्यटकों की सुविधा के लिए आवास, सड़क और जल परिवहन सम्बन्धी सुविधाओं की व्यवस्था करना।
- संस्थान की वित्तीय स्थिति को सुढ़ृढ़ करने के लिए केन्द्रीय व राज्य सरकारों, व्यक्तियों, संस्थाओं से दान अनुदान व अंशदान, भूमि तथा भवन प्राप्त करना जो संस्थान की भावना और उद्देश्य के प्रतिकूल न हो।
- संस्थान के आय तथा व्यय का लेखाजोखा सुनियोजित एवं सही ढ़ंग से रखने की प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए नियम बनाना।
- संस्थान के उद्देश्यों की उपलब्धि के लिए कार्यो को सुविधाजनक ढ़ंग तथा तत्परता से कराने के उद्देश्य से समितियॉ एवं उपसमितियॉ गठित करना एवं उनके संचालन के लिए आवश्यक और प्रासंगिक नियम बनाना।
- संस्थान के उद्देश्यों की उपलब्धि के लिए उन सभी कार्यो को सम्पादित करना जो आवश्यक एवं प्रमाणिक हो ।