जैन मूर्तिकला का सबसे बड़ा केन्द्र वर्तमान मथुरा शहर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित कंकाली टीला था। यहां सन् १८८८ से १८९१ तक की खुदाई में ७३७ कलाकृतियां प्राप्त हुई थी, इन कलाकृतियों को तीन भागों में विभक्त किया गया। १. तीर्थकर मूर्तियॉ २. शासन देवताओं की मूर्तियॉ ३. आयागपट्ट। वर्तमान में जैन संग्रहालय में जैन तीर्थकरों एवं उनसे संबंधित देवी-देवताओं की कुल ६४ दुलर्भ प्रस्तर प्रतिमाओं को प्रदर्शित किया गया है, जो कुषाण गुप्त एंव मध्यकाल से संबंधित है। इसमे जैन धर्म से संबंधित आयागपट्ट (पूजाशिलापट्टों के प्लास्टर कास्ट भी प्रदर्शति किये गये है। इन कलाकृतियों के अतिरिक्त शोकेसो में जैन लघुचित्रों को भी स्थान दिया गया है। जो जैन कथाओं से संबंधित है। जैन कलाकृतियों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ, २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ, २३ वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ एंव अन्तिम २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर की मूर्तियॉ वीथिकाओं में प्रदर्शित है। संग्रहालय भवन के मध्य में ऋषभनाथ की विशालकाय मूर्ति जो कंकाली टीले से ही प्राप्त हुयी थी को प्रदर्शित किया गया है। मध्य कक्ष में ही चारों कोनो पर सर्वतोभद्र स्वरूपᅠमें तीर्थंकरों की मूर्तियॉ प्रदर्शित की गयी है।
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