अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना संस्कृति विभाग, उ०प्र० शासन द्वारा एतिहासिक तुलसी भवन, अयोध्या में १८ अगस्त, १९८६ को की गयी। यह संस्कृति विभाग की स्वायत्तशासी संस्था है। वस्तुतः अयोध्या की पावन भूमि पर सरयु के तट स्थित रामघाट के निकट गोस्वामी तुलसीदास जी ने सम्वत् १६३१ की नवमी तिथि भौमवार को श्रीरामचरित मानस की रचना प्रारम्भ की इस संदर्भ मे निम्न पंक्ति महत्वपूर्ण हैं :-
संवत् सोहल सौ इक्तीसा, करौ कथा हरिपद धरि सीसा।
नवमी भौमवार मधुमासा, अवध पुरी यह चरित प्रकाशा॥
मानस की रचना प्ररम्भ करने के उपरान्त गोस्वामी तुलसीदास जी काशी गये और वही पर निवास करने लगें परिणामतः यह स्थान रिक्त था। सम्वत् १६८० श्रावण शुक्ल सप्तमी को गंगा के किनारे अस्सी नामक स्थान पर उनका देहावसान हुआ। वर्तमान समय में अयोध्या के प्रमुख संतो की विशेष मांग पर अयोध्या के इस स्थान जहॉ मानस की रचना प्रारम्ीा हुयी थी, पर गोस्वामी तुलसीदास जी की समृति में तुलसी स्मारक ीावन के निर्माण की मांग शासन से की गयी। तत्कालीन महामहिम राज्यपाल श्री विश्वनाथदास ने अयोध्या के संतो की मांग का सम्मान करते हुए राजाज्ञा संख्या-४७५०/४-५(४८)/६३, दिनांक ०७ दिसम्बर, १९६५ द्वारा ५२२३००.०० अवमुक्त करते हुए तुलसी स्मारक भवन के निर्माण के निर्देश जारी किये गये और दन्तधावन कुण्ड के तत्कालीन महन्त श्री भगवानदास आचारी ने शासन को भूमि हस्तगत कर दी। वर्ष १९६९ में लोक निर्माण विभाग, फैजाबाद के प्रान्तीय खण्ड ने भवन निर्माण कराया। इस भवन में ४६ग९४ वर्गफिट के दो हाल तथा २२ कक्ष निर्मित किये इस निर्मित भवन तुलसी स्मारक भवन के संचालन हेतु प्रबंधकारिणी समिति का गठन कर दिया १८ अगस्त १९८६ को प्रबंधकारिणी समिति को भंग कर इस भवन में अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना हुई और उसी परिसम्पत्ति (चल और अचल) अयोध्या शोध संस्थान के नियंत्रण में प्रदान कर दी। उस समय से इस भवन में शोध संबंधी गतिविधियों प्रदान हुई और अति सुसज्जित प्रेक्षागृह भी बन गया जिसमें लगभग ४०० व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था हुई इस भवन में गोस्वामी तुलसीदास की स्मृति को संजोये रखने हेतु उनकी रामायण लेखन मुद्रा में संगो-पांग प्रतिमा स्थापित कर दी गयी।
नोटः- इस अकादमी का विस्तृत कार्य विवरण इनके सम्बन्धित साइट पर देखा जा सकता है।